प्रिय पाठक वृन्द ,
श्रृंगार आ भक्तिक अद्भुत संतुलन स्थापित कयनिहार रससिद्ध कवि विद्यापति एक कालजयी रचनाकार छाथि । ई मैथली में जतेक पदक रचना कयलनि सभ संगीतक सुर-लय स बान्हल अछि । कोहबर घरसं लअ मंदिर धरि विद्वान स मुर्ख धरि सबहक बीच हिनक गीत (पद ) समान रूप स सम्मानित अछि ।
विद्यापति नचारी त आहां सुननहि हैब । तांडव नृत्य पर आधारित एही गीत में गोरी महादेव स कहैत छथि ज़े आई हम निश्चय कैने छि जै आंहक नाच देखी प्रसन्न होयब मुदा शिव नाचबा में अपन असमर्थता गौरी कें कहैत छथि ज़े हम कोना नाचब ? नाचबा में चारी गोट बाधा अछि ।
नटराज गीत
आजू नाथ एक बरत , महासुख लाबह हे ।
तोहें शिव धरु नट बेस कि डमरू बजाबह हे ।
तोहें गौर कहै छह नाचए, हमे कोना नाचाब हे ।
चारी सोच मोहि होए कओन बिधि बांचाव हे ।
अमिअ चुबिय भुई खसत बघम्बर छाएत हे ।
होयत बघम्बर बाघ बसह धए खायत हे।
जटासओं छिलकत गंग भूमि भरि छायत हे ।
होयत सहसमुख धार, समेटलो न जायत हे ।
रुण्डमाल टूटी खसत, मसानी जागत हे ।
तोहें गौर जएबह पड़ाए , नाच के देखत हे ।
भइन विद्यापति गाओल गाबि सुनोल हे ।
राखल गौरि के मान कि चारू बचाओल हे ।
- विद्यापति
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